गुरुवार, 21 जनवरी 2016

खंज़र

खंज़र

चहूँ ओर नफ़रत
नाहक ग़ैरो पर वार
क्रोधाग्नि के घाव
प्रतिशोध की चिंगारी
निंदा और धिक्कार
व्यर्थ की उलझन
तेजाब छिड़कते
मटमैले मन
दौलत का लालच
बिकने को तैयार
सब बैठे
अंगार बिछा कर
जिस ओर देखो
द्वेष,घृणा के खंज़र

मौलिक एंव अप्रकाशित

"विभाजन" नया लेखन नये दस्तखत

शहर की दस मंजिल इमारत के आफ़िस खिडकी से झांकते हुए अनंत ने कहा---
"वो देखो अनन्या! वो दो रास्ते देख रही हो ना ,अलग-अलग दिशाओ से आकर यहाँ एक हो गये है . . आखिर इस स्थान पर अब हमारी मंज़िल एक हो गयी है। भूल जाओ उन पुरानी बातों को। "
"हा अंनत! देख रही हूँ , किंतु उन कड़वी यादों से बाहर ..."
"ओहो! कब तक उन्हें..."
" एक होती सडक के बीच की वो सफ़ेद विभाजन रेखा भी देख रहे हो ना अंनत! वो भी अंनत से ही चली आ रही है।"
उसे कभी एकाकार करना ...
नयना(आरती) कानिटकर

"दो बूंद" नया लेखन नये दस्तखत --हवा का रुख

आनंदधाम के हरे-भरे परिसर मे एक  अन्य नयी तीन मंज़िली इमारत बनकर तैयार हो गयी थी। वहाँ के प्रबंधक कृष्णलाल ने बडे समर्पण भाव से पूरे कार्य की देखभाल कि थी।  वे बडे तन-मन से इस कार्य को समर्पित थे
छोटे सा किंतु गरिमामय समारोह आयोजित कर उस इमारत  को जनता को समर्पित करने का आयोजन रखा गया था। शहर के कलेक्टर मुख्य अतिथि के रुप मे पधारे थे। सेठ कृष्ण मोहन ने इस कार्य के लिये आर्थिक मदद की थी वे पास की कुर्सी पर विराजमान थे। सभी औपचारिकता के बाद कलेक्टर साहब ने अपना उदबोधन प्रारंभ किया
"आप इस परिसर की जिस इमारत को जनता को सौंप रहे है उसका पूरा-पूरा श्रेय  श्री कृष्ण..."
तभी एक अर्दली उनके पास एक पर्ची थमा जाता है
"क्षमा किजीए पूरा-पूरा श्रेय सेठ कृष्ण मोहन जी  को जाता है जिनकी..."
तालियों के आवाज़ के बीच...
कृष्णलाल जी कि आँखो से दो बूंद पानी धरती माँ को ...

नयना(आरती)कानिटकर


सोमवार, 18 जनवरी 2016

बच्चे मे भगवान

घर मे सत्य नारायण की पूजा होने से घर के अतिरिक्त बर्तन साफ़ करने और बाहरी बुहारी (स्वच्छता) आदि के लिए महरी को रोक लिया था. पूजा-पाठ समाप्त होने के बाद प्रसाद भोजन निपट जाने पर महरी ने घर जाने कि इजाज़त चाही तो स्नेहलता देवी बोल पडी रुको तुम भी प्रसाद भोजन कर के जाना.
 महरी अपना खाना ले आँगन के एक कोने मे जा बैठी . बब्बू भी उनकी थाली से खाने को मचल उठा .स्नेहलता देवी पोते को खींचकर जाने लगी मगर बब्बू हे कि माना ही नही और महरी कि थाली से ही खाने लगा. स्नेहलता देवी अनापशनाप बकते हुए  छुआछात के चलते पूजा के खंडित होने का दोष महरी पर मढती...
इधर मासूम बब्बू मे बसे ईश्वर महरी की  थाली से सच्चा प्रसाद ग्रहण करते रहे.

नयना(आरती)कानिटकर

शनिवार, 16 जनवरी 2016

" हम सात"

"कलावती" बेटे के इंतजार में कम अंतराल से ७ बेटियों को जन्म देकर सासू माँ के ताने सुनते हुए मन के साथ-साथ तन से भी हार गई थी . किशनलाल जी स्कूल मे प्रधानाचार्य थे ,थोड़ी बहुत ज़मीन भी थी पुश्तैनी उसका काम भी देखते सदा व्यस्त रहते.अपनी  माँ के आगे ज्यादा ना बोलते लेकिन  सब बच्चियों को कभी कोई दिल  दुखाने वाली बात ना कहते.
बेटियों  के नाम भी बडे सोच समझकर रखे थे.स्नेहा, ममता, आस्था, सत्या, नीति, आकांक्षा और  मुक्ता.यथा नाम तथा स्वभाव की बहने जान छिड़कती थी एक दूसरे पर. गुणों के आगे धीरे-धीरे दादी का ताने मारना बंद हो गया
 पास के गाँव से स्नेहा  के लिये रिश्ता आया था.घर-भर ने  तैयारी की थी.आखिर बात तय होकर लेन-देन पर आकर चल रही थी .
"बांकेजी" के पिता ज़मीन मे बहनों के हिस्से की बात पर आकर अड गये .  सभी बहने विरोध जताने के लिये एक साथ बाहर निकली  ही थी  कि...
 बाँके जी  पसिना-पसिना...शायद  गाँव के  मेले  में खेले  गए नाटक "दुर्गा" का दृश्य याद आ गया.

नयना(आरती) कानिटकर

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

यादें---"सरहद"-लघुकथा गागर मे सागर

उसका जीवन सवार कर अपने पैरो पर खड़ा करने में  माँ का बडा योगदान था  पति के सहारे  से वंचित  उसकी पिता भी बन गई थी वो।  बडी खुशी-खुशी विदा किया उसे डोली मे बैठा कर और फिर मानो उसका  मकसद पूर्ण हुआ जल्द ही विदा ले ली दूनिया से भी। 
आज कंपनी मे प्रमोशन के बाद आदेश पत्र  माँ के फोटो के सामने रख प्रणाम करने झुकी ही थी कि मोहित बोल पड़े...
"मेघा! इतने बडे ओहदे पर आकर भी  बचपना  गया नही। तुम्हारी दूनिया सिर्फ़ माँ और माँ तक ही सिमटी है।  मेरा कोई वजूद..."
अंदर तक टूट कर रह गयी  मेघा। काश...
माँ तेरी यादों की कोई सरहद होती तो कितना बेहतर होता

नयना(आरती) कानिटकर
०५/०१/२०१६

सरप्राईज - जज्बात विषय आधारित

बडे मनोयोग से श्वेता ने चॉकलेट केक तैयार किया, उसे सुंदर तरीके से सजा कर टेबल पर रख दिया शशांक को मक्के की रोटी और सरसों का साग बेहद पसंद है इसलिये घर मे ही मख्खन बनाकर साग बनाया, रोटी की तैयारी भी कर ली, उसे जन्मदिन पर सरप्राईज जो देना है.
घर को साफ़-सुथरा करके चाय का कप लेकर आँगन मे आ बैठी उसका इंतजार करते हुए। तभी मोबाईल बजा...
"हैलो! हा मैं श्वेता बोल रही हूँ. कब तक आ रहे..."
"हैलो श्वेता! मेरा डिनर पर इंतजार मत करना, मैं अपने जन्मदिन की पार्टी मनाने दोस्तों के साथ..."
आँखो से निकली आँसू की बूँदो को गालो पर लुढकने से पहले ही आँचल मे थाम लिया

नयना(आरती)कानिटकर