मंगलवार, 10 नवंबर 2015

प्यादी चाल



चलो सरिता जल्दी तैयार हो जाओ और हा सुनो!!! वो हरे-गुलाबी काम्बिनेशन की साड़ी है ना वो पहनना. आज  बास का जन्मदिन है.
" अरे सुधीर !! वो साडी तो  तुम्हें पसंद नही है ना ? याद है जब पिछली बार मैने पहनी तब तुम नाराज़ हुए फिर आज--।"
" हा हा तो क्या हुआ पर अखिलेश जी को तो तुम इस साड़ी में---और हा सुनो चलते-चलते एक सुन्दर सा तोहफ़ा भी ले चलेंगे। ऑफ़िस मे जल्द ही  पदोन्नती की सूची जारी होना है।
जन्मदिन की पार्टी पूरे शवाब पर थी जाम-से जाम टकराए जा रहे --
अरे!! आइए-आइए सुधीर और हमारी खु्बसुरत  सखी सी सरिता कहाँ  रह गई।"
"अरे !! तुम पिछे क्यो खड़ी हो !!!आओ मुबारकबाद दो हमे---अपने दोनो हाथ आगे बढा आलिंगन--
"बहुत शुभकामनाएँ सर!! वही से हाथ जोड़ते हुए सरिता ने कहाँ"---अखिलेश कसमसा कर रह गए.
"सुधीर ने सरिता के कान मे फुसफुसा कर कहा ! क्या होता जो अखिलेश जी का मान रख लेती समझ रही हो ना ,मैने बताया तो था कि पदोन्नति---
"अखिलेश जी एक तोहफ़ा हमारी तरफ से--" सरिता आगे बढते हुए बोली
"अरे!! इसकी क्या जरुरत थी"  --सरिता से हाथ मिलाते हुए उन्होने हाथ  कस कर दबा लिया."
सरिता हाथ छुडाते हुए  चिख पडी!!! अखिलेश जी!!! , सुधीर!!!
’सुधिर !!!!क्या तुम अपनी तरक्की के लिये प्यादे की तरह मेरा इस्तेमाल करना चाहते हो जो चुपचाप एक-एक घर आगे बढ़ता है."
शायद तुम नही जानते अगर मे प्यादी चाल चल दू तो राजा  को भी मार सकती हूँ.

..

अंतिम यात्रा

घर के बाहर भीड़ जमा है । पूरी तैयारी हो चुकी है।
"लड़का आ रहा है चेन्नई से . हवाई जहाज़ से आ रहा है बस पहुँचने ही वाला है।"
"एक दिन तो हम सभी को जाना है किन्तू---"
"किन्तू क्या"-- उर्मिला ने पूछा
"अरी!!  बहुत सीधी-सादी है भाभी जी और सुना है ये उनका पेट जाया भी नही है। किसी अनाथ आश्रम से उठा लाये थे। पढा-लिखा बडा किया और वो
चेन्नई जा बसा। "
’अरे हा!!! कहते है वर्मा जी ने भी तो खूब उठा-पटक  और लोगो को लूट अपना व्यवसाय चलाया।"
"तभी तो  इन्कम टैक्स की चोरी  के चलते रेड हुई . कोर्ट मे मामला चल रहा है उसी के चलते उन्हे हार्ट अटैक--"
 "हा ना बेटे को भी पता चल गया था कि वो अनाथ है- तभी घर छोड गया।"
"ओह!अब अब मिसेज वर्मा का क्या होगा बेचारी कोर्ट-कचहरी मे उलझ जाएगी। पता नही बेटा भी---??"
"अरे!! कुछ नही होगा जीवन की फ़ाइल बंद होते ही --सभी फ़ाईले बंद हो जानी है।"
"फिर भी मामला तो नाज़ुक है ना--"

तभी राम-नाम सत्य है के साथ अर्थी उठा ली गई।

नयना(आरती)कानिटकर


सोमवार, 2 नवंबर 2015

" बात बिगड गई"


"सुनील !!!यह बताइय़े हमारा जो नया टेंडर आज जमा होना है उसका क्या हुआ?"
" सर!!! पूरी तैयारी है बस एक दो मुद्दों पर आपसे चर्चा करनी है ।"
"बोलिये!! यू खिसे मत निपोरिये,जल्दी बताइये क्या कहना चाहते है।"
"सर!! वो कुछ नक़दी का इंतज़ाम हो जाता तो---- आप तो जानते ही है।"
" जब हमारी सारी कगजी कार्यवाही वैधानिक और साफ़ सुथरी है,यथासंभव किमत भी कम से कम तय कि है  फिर यह नक़दी?."
"आप तो जानते है सर !!!,इसके बिना हमारा टेंडर पास होना कितना मुश्किल है."
" बैग तैयार है, और हाँ !!! मगर काम हो ही जाना चाहिये, त्यौहार भी पास ही है ।
"जी सर!!!"
"केबीन से बाहर निकल वाह-वाह  करते हुए बैग से ५०० की दो गड्डिया निकाल अपनी जेब के हवाले कर-----"आज तो मेरी बात बन गई ।

 तभी अमित जी अपने केबिन से निकल के बर्ख़ास्तगी  का आदेश थमा देते है।

वजूद

शोध की विद्यार्थी स्नेहा की  अचानक एक दिन मुलाकात बहुत बडे व्यवसायी चंदानी परिवार के आए.आए.एम. पास आउट समीर से होती है और बात आगे बढते हुए  विवाह मे बदल जाती है
 माँ उसे बहुत समझाती है----
"बेटा!!! तुम्हारी शिक्षा और उसके व्यवसाय का आपस मे कोई मेल नही हो पाएगा तुम्हारी सारी शिक्षा व्यर्थ चली जाएगी ,लेकिन प्रेम मे कायल स्नेहा तब कुछ सुनने को राजी नही होती और अंतत: विवाह कर समीर के घर आ जाती है"

   हनिमून से लौटने पर जब कॉलेज जाने की तैयारी करते देख ,अचानक परिवार मे यह घोषणा कर दी जाती है कि उसे अब पी.एच.डी.करने की कोई आवश्यकता नही परिवार की बहुए बाहर किसी काम के लिये नही जा सकतीउसे यहाँ किसी चीज की कोई कमी नही होगी
 
उसका सारा वजूद हिल जाता है

"समीर !!! मैं अपना शोध पूरा करना चाहती हूँ । घर की महिलाओ के साथ सिर्फ़ गहने,कपड़ों और रसोई  की बातों मे पूरा दिन काटना मेरे लिए असंभव है।शोध करते हुए भी मैं अपने कर्तव्य में कोई कमी नहीं आने दूँगी
   ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था स्नेहा!!!अब घरवालों की इच्छा के विरुद्ध मैं नही जा सकता। अब तुम्हें इनके साथ सामंजस्य बिठाना ही होगा
मगर समीर!!!! तुम इतने पढ़-लिखे  हो फिर मेरी बातों-----"

अंतत: निराश स्नेहा अपने माता- पिता से बात कर और अपने  पी.एच.डी. के गाइड की मदद से   होस्टल मे रहने की व्यवस्था कर लेती है

"अरे स्नेहा!!! अचानक कहाँ जाने की तैयारी कर रही हो वो भी मुझे और  किसी  को बताए बीना."
" हा समीर !!! मैने  जल्दी कर दी तुम्हें समझने में लेकिन अब गलती  सुधार रही हूँ
काश!!   मैने माँ की बात सुन ली होती

" उनके जीवन अनुभव और वजूद का सच्चा अर्थ आज मैने जाना ।"

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

औकात

बुखार में तप रही सुधा ने खाट पर बैठे-बैठे ही "बुढ़िया के बालों" (कैंडी) के पैकेट तैयार किये और भोलु को आवाज़ लगाई।
भोलू !!!! ले  आज तू इसे बेच आ बेटा!!,वरना रात का चुल्हा नही जलेगा।"
"माँ लेकिन मेरा स्कूल???? ---चल आज मैं जाता हूँ पर तू आराम करियो (करना) घर पर।."
काश आज बापू जिंदा होते तो।
सारा दिन घूप मे घुमकर "बुढ़िया के बाल" (कैंडी) बेचते-बेचते भूखा-प्यासा हो वह एक चौराहे पर थोड़ा सुस्ताने बैठ जाता है। थकान से कब आँख लग जाती  है पता ही नही चल पाता।
तभी एक सुंदर सी परी------
 "भोलू बेटा!!! उठो ये देखो  मैं तुम्हारे लिये क्या लाई हूँ । ये लो पहले कुछ खा लो और  देखो ये रही तुम्हारी क़िताबें,चलो शाम होने वाली है मैं तुम्हें माँ के पास छोड आऊँ। चलो उठो जल्दी!!
 "अरे!!! मैं कहाँ आ गया ? "
"माँ!!! कहाँ हो ? हमारा घर और माँ तुम्हारा बुखार!! तुम ठिक तो होना????

तभी एक दरोगा आकर उसके पुठ्ठे पर धौल जमाकर कहता है--
"चल उठ !!बे क्या अपने बाप की जगह समझ रखी है । इसकी  औकात तो  देखो जो यहाँ सोकर सपने देख रहा है ।


मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

संस्कार

नाट्य विद्यालय मे दोनो ने एक साथ प्रवेश लिया था.संवेदनशील अराधना के मन मे  बुद्धिमान अमर का एक अलग ही स्थान था.संवेदनशीलता और   बुद्धिमानी के मिलन से नाट्य विद्यालय मे नाटकों के   नये-नये आयाम रचना उनका शग़ल बन गया.
  एक रात एक नाटक के मंचन के लिये दोनो के बीच विचार-विमर्श चल रहा था.अराधना फाइनल ड्राफ़्ट की तैयार कर रही थी.रात बहुत गहरा चुकी थी.
अराधना के लिये अमर के मन मे जो कुछ था दिमाग से दिल पर हावी होने लगा.मन की तंरगे उठी  और उसने अराधना को खींचकर सिने से लगा लिया.
"पास आओ अराधना आज मे तुम्हें जी भर देखना चाहता हूँ."
तभी सुरुर भरा अहसास होश पर हावी हुआ और
"तडाक!!!! तडाक!!! तडाक!!!! ------ ये क्या है?
"मेरी संस्‍कार की दीवारें इतनी कच्‍ची नहीं हैं अमर।"

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

पश्चाताप की ज्वाला

 माँ ने मेरा विवाह अपनी सहेली सुधा की बेटी "शारदा" से करा दिया था। वो  उसे बहुत चाहती थी।
साधारण नैन-नक्श ,यथोचित शिक्षण प्राप्त  शारदा अत्यंत सरल स्वभाव की थी.गाँव के ही आंगनबाडी में सहायिका के पद पर कार्य करती थी।
मैं हमेशा से सुंदर पत्नी की चाहर रखता था, लेकिन हर बार माँ मेरी बात गलत ठहरा मुझे समझाइश देती रहती थी। "बेटा व्यक्ति को उसके रुप से नही गुण से पहचानना चाहिए।"  लेकिन मैं कभी उनकी बात को महत्व ना देता।
मैं हरदम शारदा के रुप-गुण पर कटाक्ष करता रहता था। वो आखिर कब तक मेरे बाणो को सहती। उसने चुप्पी ओढ ली थी।  केवल आवश्यक संवाद था हमारे बीच,किंतु माँ से पुरी तरह जुड़ीं रही.
लेकिन इस बीच मेरी हवस के चलते प्रकृति और नियती अपनी लीला रचा चुकी थी। शारदा माँ बनने वाली थी।
       एक दिन मैने अचानक घोषणा कर दी  की माँ "मैं अपनी सहपाठी रुप सुंदरी प्रियंका के साथ विवाह रचाना चाहता हूँ।
"शारदा!! यह रहा तलाकनामा उसकी ओर  फेक कहा!! इस पर हस्ताक्षर कर दो."
      माँ ने बहुत आपत्ति उठाई कि शारदा माँ बनने ----- हार कर अंत मे घर छोड़ने का आदेश सुना दिया.
शारदा ने बीना कोई सवाल उठाए चुपचाप हस्ताक्षर कर दिए.सहमति से तलाक की कार्यवाही भी जल्द हो गई.
मैं स्वछंद हो गया,
जल्द प्रियंका से विवाह रचा उसके साथ दूसरे घर रहने लगा।
मन से टूटी शारदा शरीर से भी टूट गई। मुन्ने को जन्म दे वो हमेशा के लिये माँ का साथ छोड़ गई।
माँ भी बूढ़ी हो चुकी थी,मुन्ने को सम्हालना बस का ना था। हार कर  उन्होने हमे पुन:घर मे जगह दे दी।
   घर मे जगह मिलते ही प्रियंका ने एक-एक कर सारी डोर अपने हाथ थाम ली। घर,संपत्ति,खेत के कागज़ों पर हस्ताक्षर करवा अपने नाम कर लिया। उसके सिर्फ़ उसके रुप मे उलझा  कुछ ना समझ पाया।
    अंत मे एक दिन मुझे माँ और मुन्ने सहित घर के बाहर कर दिया।
 मैं माँ के चरणों मे गिर क्षमा मांगने लगा ।
"माँ!!!! काश मैने रुप की जगह शारदा के अंतर मन को समझा होता।"
आज मैं अपने किये कर्मो पर पश्चाताप की" ज्वाला " मे जल रहा हूँ.