शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

एफ़ आइ.आर--लघुकथा के परिन्दे पहली प्रस्तुति

"विक्षिप्तता की झलक" विषय आधारित
१ली प्रस्तुति

“एफ.आई.आर”

स्वाति मेडम के प्रवेश करते ही इंस्पेक्टर आदित्य आश्चर्य से देखते हुए झटके से अपनी सीट से खड़े होकर कुर्सी आगे खिसकाते हुए बैठने का आग्रह करते हैं।
“अरे! सुनो मेडम के लिए एक ग्लास पानी लाना।” थाने में अचानक तेजी से हलचल हो उठती हैं।
“आप क्या लेंगी चाय या काफी…”
“सुनो! मेडम के लिए गर्मागर्म काफी लाना।”
“जी मेडम कैसे याद किया, आपने क्यो तकलीफ की। बंगले पर बुलवा लिया होता और साहब जी कैसे हैं? सचमुच साहब जी जैसा सुशील,सहयोगी इंसान हमने नहीं देखा। ना तो कभी किसी पर नाराज होते देखा ना अपशब्द बोलते। बडे आला दर्जे के शरीफ़ हैं हमारे साहब। क्या वे दौरे पर हैं?
“फालतू बाते छोडिए मुझे एक एफ.आई. आर. दर्ज करानी हैं “-- प्लीज जल्दी कीजिए।
“जी!बताईए” रजिस्टर और पेन उठाते इंसपेक्टर आदित्य ने कहा।
“मुझे  “....” के खिलाफ मानसिक प्रताड़ना और बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराना हैं।
थाने की हलचल कानाफूसी में बदल गई।

नयना(आरती)कानिटकर
०६/०२/२०१६
भोपाल

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

हायकू

 चाँद चाहता
धरणी से मिलाप
छाया कोहरा   (१)

तारे आतुर
उतरने धरा पर
छाया कोहरा(२)

बाँट जोहती
धरती सूरज की
छटे कोहरा(३)

सूरज आया
है धरा सम्मोहित
छटा कोहरा(४)

ऋतु बसंत
नाचे सुरताल में
हटा कोहरा(५)

मौलिक एंव अप्रकाशित

कोहरा -कुहासा (अतुकान्त)

 कोहरा -कुहासा (अतुकान्त)


मैं ढुंढती हूँ तुम्हें
टेबल पर, फाइलों में
किताबों से अटी
अलमारी के खानो में भी
कभी गाड़ी मे बैठे-बैठे
पास की सीट पर,तो कभी
बाजार मे हाथ मे लटकाए झोले संग
कभी-कभी तो
अमरुद की फाँक मे भी कि
खाएंगे संग
चटपटे मसाले के साथ और
झुमेंगे पेड़ो के झुरमुट मे,
पक्षियों के कलरव के बीच
फिर भिगेंगे प्यार की ओंस मे
छुपते-छुपाते नज़रों से और
धो डालेंगे रिश्तों पर छाया कोहरा
नदी किनारे के कुहांसे में,
एकसार होकर

"नयना"

मौलिक और अप्रकाशित

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

कोकिल कंठी

एक  बहुत साधारण  परिवार में उसका जन्म हुआ था पिता के कमाई मे बस सरकारी स्कूल मे साधारण शिक्षा और अन्य बहुत ही आवश्यकताओ को जुटाया जा सकता था. माँ अपनी क्षमता से अच्छा से अच्छा करती मगर...
उसका मन पढने में लगता मगर ... बहुत सुरीला कंठ पाया था रेडियो पर सुन-सुनकर ही गीत दोहराती रहती थी।  घर से कुछ दूरी पर ही संगीत विद्यालय था मगर वहाँ प्रवेश की हसरते लिये ही वक्त गुजर गया। समय के साथ ब्याह हो गया अच्छे सुखी परिवार में जब पहली आहट हुई माँ बनने की तो पुन: नई हसरते... ईश्वर से बस एक प्रार्थना करती कि मुझे एक बेटी देना बडी-बडी आँखो वाली और उसका कंठ सुरीला बिलकुल कोकिल कंठी हो फिर चाहे उसका रंग सावंला ही क्यो ना हो
अनेको रुकावटो के बावजूद उसने कोकिल कंठी बेटी को संगीत की शिक्षा दिलाई
बेटी के पहले शास्त्रीय  संगीत कार्यक्रम  मे  जाते वक्त पति ने रास्ता रोकना चाहा मगर..
प्रस्तुति देती  बेटी को देखते उसकी आँखो मे संतुष्टि के भाव उभर आयेकार्यक्रम समाप्ति पर आशिर्वाद देने पिता सबसे पहले मंच पर थे.
नयना(आरती)कानिटकर

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

रफ़्तार विषय आधारित-अमरुद के पेड--लघुकथा के परिंदे

खुबसुरत सी चार मंजिला स्कुल इमारत के चारो ओर घने पेड थे. कुछ फूलो के,कुछ छायादर और कुछ फ़लो के भी. चारो ओर स्वच्छ सुरम्य वातावरण, कक्षा मे बच्चो को पढाते शिक्षक-शिक्षिकाओ की आवाज,कही-कही इक्का-दुक्का दिखते कर्मचारी.
माली बाबा के हाथ बगीचे की देखरेख मे लगे हुए, काम करते हुए वे अमरुद के पेडों के पास आ गए. पेड लदे पडे थे फलो से मौसम जो था अमरुद का. लेकिन दिमाग मे कुछ उथलपुथल मची थी.बस स्कुल की छुट्टी होते ही बच्चे आएगे धमाचौकडी मचाएगे अमरुद तोडने के लिए और फिर वो गालियाँ बकेगे. कितना मजा आयेगा.
तभी छुट्टी की घंटी बजी .माँ-पिता की बच्चो के जल्दी घर ले जाने की होड. बस से जाने वालो का मेला, चारो ओर बस अफ़रातफ़री.माली बाबा टकटकी लगाए देखते रहे...
पेडों पर अमरुद ज्यो के त्यो लगे रहे, छुट्टी पर गुजरते बच्चों के झुंड में से किसी ने उनकी तरफ़ देखा भी नहीं. वे चिन्तित हो उठे.
क्या! चिन्तन के लिये ये काफ़ी नहीं है.
नयना(आरती)कानिटकर


सहारे की आदत-"आफ़िस" लघुकथा के परिंदे

आफ़िस चारो ओर अस्त-व्यस्त पडा था।  आफ़िस ब्वाय संतोष  आया नहीं था। सारे कर्मचारी  अंगूठे का निशान लगा अपनी-अपनी सीट पर जम चुके थे।  किसी को अपने टेबल पर धूल नजर आ रही थी तो कोई चाय की तलफ़ लिये यहाँ-वहाँ डौल रहा था।  अपने केबीन से बास भी बार-बार बेल बजाकर उसके बारे मे पूछ रहे थे लेकिन कोई भी अपनी सीट से उठकर अपना टेबल साफ़ करने या चाय का कप खुद लेकर आने की जहमत नहीं उठा रहा था।  तभी "आभा" मेडम ने प्रवेश किया वो आफ़िस काम के साथ-साथ व्यवस्थापक का निर्वाह भी बडी खूबी से करती थी।  आते ही हाथ मे कपडा उठाया और मेज...
मोबाईल लगाकर कान के निचे दबा गुमटी वाले को चाय का आदेश दे दुसरे हाथ से फ़ाईले व्यवस्थित कर दी। 
अंदर बास के चेहरे पर सुकुन के भाव थे।  इधर आभा मेडम के चेहरे पर कुटिल मुस्कान। 
आज कर्मचारियो की सालाना रिपोर्ट जो लिखी जानी थी। 

नयना(आरती)कानिटकर

बुधवार, 27 जनवरी 2016

यह स्वप्न कैसा--कघुकथा के परिंदे --"मोबाईल टावर"

 मोहल्ले की गुप्ताईन के छत पे जब से मोबाईल का टावर लगा था  उसके तो व्यारे-न्यारे हो गए थे। मतकमाऊ लड़का भी बडे ठाठ से मोटरसाइकिल पे ऐठ मारते घूमता रहता था  टावर का किराया ही जो ४०-५० हजार आ रहा था। 
इधर शर्माईन भी सोचती रहती काश! मेरे घर भी कोई दूसरी मोबाईल कम्पनी वाले टावर लगाने आ जावे तो मैं भी अपनी छत तुरंत उन्हें दे दू,  फ़िर मुझे भी शर्मा जी और बच्चों के सामने हाथ ना फैलना पडे पैसों के लिये।  वो शर्मा जी के पिछे पडी रहती...
"ऎ जी! कोई जुगाड आप भी लगाओ ना टावर के लिये सोचो रिटायरमेंट के बाद आराम से जी लेंगे"
"अरी भागवान! क्यों अपने सर मुसीबत लेना चाहती हो अभी तो आंगन मे जो दो-चार चिड़िया चहकती है वो भी आना बंद हो जावेगी, फिर इतना भार हमारी छत..."
" तुम! चुप करो जी" -- मैं ही देखती हूँ कुछ
घर की डोर बेल बजने पर दरवाज़ा खोलते ही...
"जी! मै एक मोबाईल कंपनी से... क्या आप अपने छत की जगह हमे..."
" हाँ हाँ! क्यो नहीं मारे खुशी के उछलते शर्माईन बोली, कितना किराया और पेशगी रकम देगें आप "
"ये लिजीए इन कागज़ात पर दस्तख़त किजीए और ये आपकी पेशगी रकम पूरे "....." हजार नकद.
वो खुशी के मारे उछल पडी।  तभी ...
बादल कडकडाने की आवाज़ और  तेज बारिश के साथ कुछ ढहने की आवाज़ से उनकी नींद टूटी  भागकर बाहर आयी...
भरी बारिश मे लोग गुप्ताईन के घर के आगे भीड़ जमाए खड़े है। 
नयना(आरती) कानिटकर