शुक्रवार, 1 मार्च 2013

परम्पराए और वैज्ञानिक आधार--3(मंत्रोच्चार)

       #परम्पराए और वैज्ञानिक आधार
#नवरात्र 
#मंत्रोच्चार 

माँssss माँssss की आवाज़ के साथ मेरी बेटी अपरा रसोई घर  में प्रवेश करती है.माँ देखो ना दादाजी को कब से माला हाथ में लिए सिर्फ़ मंत्र पढ रहे है   इससे क्या होता है.यह तो समय कि बर्बादी है सिर्फ़. 
क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार  है? मैं तो इन सब चीज़ो को नही मानती और आप  भी विज्ञान स्नातक होते हुए इन सब बातों पे विश्वास करती है? .हे ईश्वर आप इन सब अंधविश्वास को कब तक मानते रहेंगे.
    इतने मे दादाजी भी चाय कि फरमाइश लिये रसोई मे प्रवेश करते है.वे माँ बेटी का संवाद सुन अपरा से कहते है बेटी चाय लेकर बैठक में आओ मैं  तुम्हें विस्तार से बताता हूँ.अपरा चाय का कप लिये बैठक मे जाती है.दादाजी प्यार से उसे पास बैठा कर कहते है सुनो-------
         मैं भी पहले इन बातों मे विश्वास नही करता था.लेकिन एक बार बहुत सालों पहले जब मैं अपने मामा के घर गया था तो मेरे मामा किसी गहन ध्यान मे मग्न थे.उन्होने मुझे इशारे से बैठने को कहा और जब मन्त्रो का जाप पूरा हुआ तब मेरे कुशलता के बारे मे जानकारी ली.उस वक्त मैं ने उनसे यही बात कही जो आज तुम अपनी माँ से कह रही थी.तब मेरे मामा ने कहा वक्त आने पर मैं अपनी बात सिद्ध करुँगा.ऐसे ही काफी समय बीत गया पुन: एक बार जब मे उनके घर गया तो दरवाज़े की घंटी बजाने ही वाला था कि अंदर से मेरे लिये गालियो कि बौछार होने लगी तब मैं गुस्से मे तनतनाते हुए अपने घर आ गया ,मामा के घर कभी ना जाने कि कसम खाकर .ऐसे ही काफ़ी समय बीत गया.
जब मैं बहुत दिनो तक उनके घर नही गया तो वे बैचेन हो उठे .उन्होने ही मुझे बुलावा भेजा क्षमा याचना के साथ.दूसरे दिन मैं उनके घर पहुँचा तो उन्होने मेरे तरीफो के पूल बांधना शुरु कर दिये .मैं बडा खुश हो गया.तब वे बडी जोर से हँसने लगे हाहाहाहा------
      देखो तुम्हें कहा था ना मंत्रो का अपना महत्व होता है.उस दिन तुम्हें जब गालियाँ दी वह गुस्से का मंत्र था उसका प्रभाव तुम्हारे दिमाग पर हुआ और तुम गुस्से से भर उठे.मंत्र का प्रभाव हुआ ना तुम पर.

अभी देखो तुम्हारी तारीफ कि वह खुशी का मंत्र था उसने तुम्हें खुश कर दिया.

असल मे शब्दों के उच्चारण से जो ध्वनि तरंगें निकलती है उसका सीधा असर हमारे  मस्तिष्क के क्रिया कलापो पर होता है.मस्तिष्क मे तंत्रिका तंत्र का जाल बिछा हुआ है वह तुरंत संदेशा देते है हमारे क्रिया कलापो का, फिर इनका असर तुरंत हमारे कोशिका के कोशिका विज्ञान (cytology) पर होता है.आओ एक आसान उदाहरण देता हूँ
                   जब तुम पानी मे कंकड-पत्थर फेंकती हो तो उसमे  लहरें उत्पन्न होती जो दूर तक जाती हैं, उसी प्रकार हमारे मुँह से निकला प्रत्येक शब्द, आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है और उस कंपन से लोगों में प्रेरणा जागृ्त होती हैं। जैसे मैने उपर बताया था-----
                       मंत्र शक्ति पुर्णतया ध्वनि विज्ञान  के सिद्धांतों पर आधारित है.इनमें जो शब्द गुंथे गये है. मंत्र उच्चारण से भी एक विशिष्ट ध्वनि कंपन बनता है जो कि संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त हो जाता है। इसके साथ ही आंतरिक विद्दुत भी तरंगों में निहित रहती है।  उनका अपना महत्व है रासायनिक क्रियायों के फलस्वरूप शरीर में विद्दुत जैसी एक धारा प्रवाहित होती है(आंतरिक विद्दुत) तथा मस्तिष्क से विशेष प्रकार का विकिरण उत्पन्न होता है। इसे आप मानसिक विद्दुत कह सकते हैं। यही मानसिक  विद्दुत (अल्फा तरंगें) मंत्रों के उच्चारण करने पर निकलने वाली ध्वनि के साथ गमन कर,दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करती है या इच्छित कार्य संपादन में सहायक सिद्ध होती है। 
     मंत्र साधना से मन ,बुद्धि,चित्त मे असाधारण परिवर्तन होता है.विवेक ,दुरदर्शिता .तत्वज्ञान और बुद्धि मे उच्चता प्राप्त होती है.
          मैं जो"आँखो"के लिये रोज मंत्र जाप करता हूँ उसका असर असाधारण रुप से मेरी दृष्टि क्षमता पर हुआ है.कल से मैं तुम्हें अलग अलग मंत्रो के बारे मे जानकारी दूँगा.
साथ ही मंत्रो को उच्चरित करते वक्त अलग अलग प्रकार के मानकों का उपयोग किया जाता है जैसे रुद्राक्ष , स्फटिक , चन्दन की लकड़ी से बने मोती आदि. हाथों के अंगुली की मुद्रा बनाकर भी जाप किया जा सकता है.
     अपरा अपलक संतुष्ट भाव से दादाजी को निहार रही थी.अरे!!  अरे!!! अब उठो अपना ध्यान पढाई मे लगाओ बाकी बातें हम अब बाद मे करेंगे.
   जी!!जीSSSS दादाजी अब हमारी क्लास भी शाम को रोज लगा करेगी नये-नये मंत्रो के बारे मे जानने के लिये
नयना (आरती) कानिटकर

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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

समेटना चाँहती हूँ

फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल क्षणों को जो
प्रति पल मेरे रक्त के साथ
संचारित होते रहते थे,मेरी
देह मे मस्तक से पग तक
                               फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
                                उन अनमोल भावनाओं को
                               जो मेरे अंदर रोम-रोम मे
                               बसी हुई थी गंध के समान
                              काया मे  नख से शीख तक     
फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल रिश्तों को जो
जो मेरे साथ  दाएँ-बाएँ चलते
 भरते थे मुझ मे आत्मविश्वास
उन्नत मस्तक से दृढ़ कदमों तक


फिर से समेटना चाहती हूँ !!!!!!

                              

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

मेरे बसंत

चाय का घूँट तो रोज
 भरती हूँ चुस्कियों के साथ
सुबह शाम
 घर के बागिचे में या
छत पर गुनगुनी धूप के साथ
फिर भी आज शाम कि चाय का
घूँट भरते ही
मेरी कई दिनो से
निस्तेज पडी देह में
सरसराहट दौड़ गई
बागिचे मे बहती मंद बयार
पत्तों कि सरसराहट
नवकोंपलो का हौले
से झाँकना
बसंती फूलों कि मधुर सुगंध
देह मे नव संचार कर गई
अहसास दिला गई उसके,
आने का,जिसके
इंतजार में प्रकृति
गर्मी,बारिश,ठंड के थपेडे
झेलती है और फिर
बसंत की गोद मे बैठ
नवांकुरो को देख
आल्हादित होती है.





मंगलवार, 22 जनवरी 2013

मेरे बाबा

थामी थी उँगली बाबा की
जब मैने चलना सिखा था
गिरते वक्त सम्हालते हुए
बाबा को हँसते देखा था
धीरे-धीरे हाथ पकड़ फ़िर
बाबा ने ही थी सीढ़ी चढाई
चढ़ते और उतरते मे उन्हें
अपलक निहारते देखा था
धिरे-धिरे बिन थामे जब
सीढ़ी-दर सीढ़ी चढने लगी
हँसते हुए मस्तक पर उनके
चिंतित आडी रेखा को देखा था
चढ़ते-चढ़तेऊँचाई जब मैं
बिच सीढ़ी मे  ही अटक गई
उपर आसमान, नीचे धरती देख
अपने आप मे भटक गई
बाबा ने फिर कदम बढाए
देकर अपना हाथों मे हाथ
पहले धरती पर लाए, फिर
फेरा मेरे माथे पर हाथ
कहने लगे बेटा पहले धरती पर
नींव बनाओ बडी मजबूत
फिर रखो हर पायदान पर
पाँव तुम्हारे बडे सुदृढ
-----------------------
बाबा कि बातें सुनकर मैं
लटकी सीढ़ी से नीचे आ गई
लिपटकर गले मे बाबा के
मैं सौ-सौ आँसू बहा गई
फिर थामा था हाथ मेरा
आज बाबा ने मज़बूती से
देकर कहा हिम्मत बाबा ने
अब ऐसे ना तुम घबराओ
दो मेरे हाथ मे हाथ तुम्हारा
सीधे एवरेस्ट को चढ़ जाओ
दिये हाथ मे हाथ बाबा के
मैं तो गिरते-गिरते सम्हल गई
लड़ने कि ताकत ले जुटा अब
दुनिया जितने निकल गई

नयना(आरती) कानिटकर
२२/०१/२०१३



सोमवार, 21 जनवरी 2013

पिता कि व्यथा

आओ हम-तुम यू गले मिले
माँ से तो तुम हर रोज मिले,

आओ ख़ुशियाँ  मेरे संग बाँटो
जज्बातों कि लहरों को काटो,

मन के छुपे भावो को यू ना रोको
आँसुओ को  आँखो मे ना  रोको,

ना लगे  बात न्याय युक्त तो
मुझ को भी रोको और टोको

फिर

तुमने मुझसे ये दूरी क्यों चुन ली
माँ कि सदा पकड़ ली उँगली,

आओ हम-तुम साथ चले
डाले हाथों मे हाथ चले,

माँ को तो हर दिन याद करो
पर मुश्किलों मे मेरा हाथ धरो,

लो अब हम तुम गले मिले
चले रिश्तों के सुनहरे सिलसिले

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

फ़िर सोचती ही रह गई।

मैं चाहू कुछ तो बोलू
पर फ़िर सोचती ही रह गई
बात तो आई ज़ुबा पे
लबो परही सिमट गई
लगता है कुछ रुककर बोलू
धीरे-धीरे सिलसिला खोलू
पर पर्वत सी हिम्मत मेरी
माटी सम बह गई
फ़िर सोचती ही रह गई।
जो चाहू फ़िर वैसा ही होगा
सिर्फ़ सपने देखती रह गई
रिश्ते नाते के भ्रम में
अधूरी खोखली रह गई
कितना मुश्किल है चुभे काँटे को
हौले से निकाल पाना लेकिन
काँटो मे खिलते गुलाब को देख
अपना दर्द हँसते-मुस्कुराते सह गई
फ़िर सोचती ही रह गई।

 

बुधवार, 21 नवंबर 2012

सागर

बैठी हूँ समुद्र किनारे
देखती हूँ
लहरों कि अठखेलियाँ
मन भी उन लहरों
के साथ
अठखेलियाँ करने लगता है
पर सागर तो इठलाता है
हरदम अपनी लहरों पर
लगता है
मैं भी इठलाउँ
 चुन लाऊँ
इस विशाल अथांग
सागर से
सुंदर-सुंदर मोती
पीरोलू माला उनकी
पहन गले मे इठलाऊँ
फिर
लगाने लगती हूँ
गोते अनेकों
पर हाथ मे कुछ नही समाता
क्योंकि वहाँ तो ढेर है
सुंदर-सुंदर मोतीयों का
ज्ञान के सागर कि तरह
उसमे जीतने गोते लगाओ
हर बार एक अलग मोती
हाथ लगता है
इसलिये उसे गले मे पहन
इठलाया नही जा सकता
इसलिये यह अथांग सागर
इठलाता है
अपनी लहरों पर