माँ तो बस माँ होती है
हमेशा मेरी नज़रों
के सामने
चाहे वह समा गई हो
अनंत में किन्तु,
मेरे हृदय मे समाई
वो
सदा खड़ी है मेरे पिछे
मेरा आधार, मेरा संबल
वो तो एक अनंत आकाश है
जब भी याद करूँ
वो ना बहन, ना बहू,
ना ही लड़की किसी की
वो तो सिर्फ़ माँ हैं
अपने बच्चों की
वो आशियाना होती हैं
सब सहते हुए
माँगती है अंजूली भर
आशीर्वाद ,बेहतरी का
बच्चों के ख़ातिर
जिस दिन चले गये थे, मेरे बाबा
मैने देखा है उन्हें
सम्हलते खुद को,मेरे लिए
पिता होते हुए.
मूळ कविता ---प्रकाश रेडगावकर
अनुवाद--नयना(आरती)कानिटकर
१०/०३/२०१६
लेबल
- अनुवाद (7)
- कुछ पत्र (2)
- कुछ मन का (12)
- मराठी कविता (3)
- मेरा परिचय (1)
- मेरी कविता (65)
- मेरी पसन्द की कविता (1)
- लघु कथा (84)
- लघुकथा (17)
गुरुवार, 10 मार्च 2016
बुधवार, 2 मार्च 2016
"हस्ताक्षर"
पूरा घर गेंदे के फूलों की महक और छोटे-छोटे बल्ब की लडियों से दिप-दिप कर रहा था। हँसी-ठिठौली से सारा वातावरण आनंदमय था। वह भी अपनी सबसे अच्छी साड़ी निकाल हाथों से सिलवटो को दूर कर पहन के आईने के सामने...दंगो मे अगर सब कुछ ना लूटा होता तो...।
श्रेया के विवाह का अवसर और ...बीना उपहार शादी मे आना...मगर परिस्थितियाँ...।
" श्रीलेखा! चलो जल्दी बारात आने वाली है और हा! ये लो गहने एकदम खरे सोने के समान दिखते है. पहन लो जल्दी से आखिर बिरादरी मे हमारा भी कोई रुतबा...।"
" आपका...बस कुछ दिनों की बात है भैया। व्यवसाय सम्हलते ही ...।"
"बारात घर के दरवाज़े तक ..." बस बहना जल्दी से इन कागज़ात पर हस्ताक्षर कर आ जाइए।"
"बारात के स्वागत मे बुआ का सबसे आगे होना जरुरी है।"
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल.
मंगलवार, 1 मार्च 2016
"मातृछाया"-तीर्थयात्रा विषय पर-लघुकथा गागार मे सागर
"मातृछाया"
अटैची मे सामान जमाते-जमाते एक तस्वीर हाथ लग गई और खो गई पुरानी यादों मे....।
कोख हरी ना होने पर घर-परिवार के तानो से तंग आकर आखिर उसने सुधीर को दूसरे विवाह की इजाज़त दे दी थी और स्वयं चली आई थी "मातृछाया" में।.
शुरुआती दिनों मे जो काम हाथ आता झाड़ू-पोंछा,बच्चों के कपड़े धोना, नहलाना, कभी-कभी खाना बनाना ...सब करती ।
आखिर उसका सेवा भाव देखकर संस्था के संचालको ने उन्हे रहने का कमरा देकर बच्चों की देखभाल के लिये नियुक्त कर लिया.बस तब से दिन-रात अनाथ नवजात बच्चों की माँ हो गई थी।
"सुनंदा अम्मा! जल्दी करो आपके स्टेशन जाने का वक्त हो गया है।"
बच्चों का सब सामान करीने से रखते हुए सुनंदा अपनी मैनेजर से कहती जा रही थी...।
देखो खुशी! सब बातों का ध्यान रखना बच्चों को कोई तकलीफ़ ना हो और...।
"हा! हा! अम्मा आनंद से तीर्थयात्री कर आओ. मैं सब सम्हाल लूँगी। कोई बहुत दिनो की बात तो है नहीं जब लौट आओ तो फ़िर सारे डोर ले लेना अपने हाथ। चलो अब आपका आटो आ गया।"
अपना सामान ले बाहर निकलने को थी कि अचानक आँगन मे रखे झूले से नवजात के रोने की आवाज़ गूँजी।
दौडकर बच्चे को सीने से लगाया।
"खुशी! मेरी अटैची अंदर ले जाओ."
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
अटैची मे सामान जमाते-जमाते एक तस्वीर हाथ लग गई और खो गई पुरानी यादों मे....।
कोख हरी ना होने पर घर-परिवार के तानो से तंग आकर आखिर उसने सुधीर को दूसरे विवाह की इजाज़त दे दी थी और स्वयं चली आई थी "मातृछाया" में।.
शुरुआती दिनों मे जो काम हाथ आता झाड़ू-पोंछा,बच्चों के कपड़े धोना, नहलाना, कभी-कभी खाना बनाना ...सब करती ।
आखिर उसका सेवा भाव देखकर संस्था के संचालको ने उन्हे रहने का कमरा देकर बच्चों की देखभाल के लिये नियुक्त कर लिया.बस तब से दिन-रात अनाथ नवजात बच्चों की माँ हो गई थी।
"सुनंदा अम्मा! जल्दी करो आपके स्टेशन जाने का वक्त हो गया है।"
बच्चों का सब सामान करीने से रखते हुए सुनंदा अपनी मैनेजर से कहती जा रही थी...।
देखो खुशी! सब बातों का ध्यान रखना बच्चों को कोई तकलीफ़ ना हो और...।
"हा! हा! अम्मा आनंद से तीर्थयात्री कर आओ. मैं सब सम्हाल लूँगी। कोई बहुत दिनो की बात तो है नहीं जब लौट आओ तो फ़िर सारे डोर ले लेना अपने हाथ। चलो अब आपका आटो आ गया।"
अपना सामान ले बाहर निकलने को थी कि अचानक आँगन मे रखे झूले से नवजात के रोने की आवाज़ गूँजी।
दौडकर बच्चे को सीने से लगाया।
"खुशी! मेरी अटैची अंदर ले जाओ."
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
शनिवार, 27 फ़रवरी 2016
नया लेखन नए दस्तखत--चित्र प्रतियोगिता- "सुरक्षा"
मंत्री पद की शपथ के बाद अपने लवाजमे ( जी हुजूरी करता चमचो का घेरा) के साथ पधार रहे थे ....
"यार! एक बात समझ नहीं आती चुनाव जीतते ही इन्हें इतनी सुरक्षा की जरुरत क्यो आन पडती है।
"हा यार! पता नहीं कब कौन बदला निकाल ले।"
चुनाव जितने के लिये इतने गुंडे जो पाल रखे होते है।
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
"नाहर" लघुकथा के परिंदे- कल का छोकरा विषय आधारित ८ वी प्रस्तुती
झाबुआ के लोक निर्माण विभाग मे जब पाठक जी नियुक्ति लेकर आए तो थोड़ा विचलित थे | अशिक्षित आदिवासी लोगो का इलाक़ा पता नहीं कैसे सामंजस्य बैठा पाएँगे| वो तो सारा दिन ऑफ़िस मे गुजार देंगे लेकिन श्रुति क्या करेगी |
श्रुति आस-पास के मज़दूर बच्चों को इकट्ठा कर उन्हे कहाँनिया सुनाती कभी साफ़-सुथरा रहने का सलिका सिखाती तो कभी नाच-गाना सिखाती | बडे हिल-मिल गये थे बच्चे |
नाहरसिंह तो आँखो का तारा था उसका बडा शोख और चंचल बच्चा | भोपाल स्थानान्तरण पर उसे भी साथ ले आए | वह घर-बाहर के काम के उसकी मदद करता साथ-साथ सरकारी स्कूल मे पढ़ाई भी |
सभागार के माइक से गुंजी आवाज़ और उनका विचार चक्र थम गया |
प्रदेश का करोड़पति जीवनबिमा एजेंट ....
दोनो के बीच खड़ा नाहरसिंग ..तालियों की गड़गड़ाहट और कैमरा की फ़्लैश लाईट |
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२७-०२-२०१६
श्रुति आस-पास के मज़दूर बच्चों को इकट्ठा कर उन्हे कहाँनिया सुनाती कभी साफ़-सुथरा रहने का सलिका सिखाती तो कभी नाच-गाना सिखाती | बडे हिल-मिल गये थे बच्चे |
नाहरसिंह तो आँखो का तारा था उसका बडा शोख और चंचल बच्चा | भोपाल स्थानान्तरण पर उसे भी साथ ले आए | वह घर-बाहर के काम के उसकी मदद करता साथ-साथ सरकारी स्कूल मे पढ़ाई भी |
सभागार के माइक से गुंजी आवाज़ और उनका विचार चक्र थम गया |
प्रदेश का करोड़पति जीवनबिमा एजेंट ....
दोनो के बीच खड़ा नाहरसिंग ..तालियों की गड़गड़ाहट और कैमरा की फ़्लैश लाईट |
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२७-०२-२०१६
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016
छोटे-छोटे सपने-जिंदगी नामा. ऽ लघुकथा के परिंदे-सनसनाते बाण 6 टी प्रस्तुति
एक छोटा सा रेप सीन मारे आनंद के उसने सिर्फ़ इसलिये स्वीकार कर लिया था कि रोज के मिलने वाले मेहनताने से दो से ढाई गुना ज्यादा रकम जो मिलनी थी.
अनेको जरुरतो के सपने तैर गये उसकी आँखो में. रेप सीन के अभिनय मे जान डालने के चक्कर मे रीटेक पे रीटेक और आखिर....
थके तन और टूटे दिल से जब उसने इसपर ऎतराज जताया तो...
" तन के लिये इतना शोर मचा रहीं हो अपनी पेट की आग का क्या करोगी. ये लो तुम्हारी रकम .अब निकलो यहाँ से. तुम नहीं कर सकती तो बहूत है तुम्हारे पिछे इंतजार में."
टूटे काँच की तरह भरभरा गई वह.
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२५-०२-२०१६
अनेको जरुरतो के सपने तैर गये उसकी आँखो में. रेप सीन के अभिनय मे जान डालने के चक्कर मे रीटेक पे रीटेक और आखिर....
थके तन और टूटे दिल से जब उसने इसपर ऎतराज जताया तो...
" तन के लिये इतना शोर मचा रहीं हो अपनी पेट की आग का क्या करोगी. ये लो तुम्हारी रकम .अब निकलो यहाँ से. तुम नहीं कर सकती तो बहूत है तुम्हारे पिछे इंतजार में."
टूटे काँच की तरह भरभरा गई वह.
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२५-०२-२०१६
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016
अविश्वसी -मन-लघुकथा के परिंदे-"आश्वासन" ५वी
ऑफ़िस मे पहुँचते ही उसकी नजर अधिकारी के उस नाम की तख़्ती पर पडी जिनसे उसे काम करवाना था।
"सर! ये लिजीए सारे कागज़ात जिनसे मेरा काम हो सकता है."
"ठिक हैं रख दिजीए।" नज़रें झुकाए हुए ही बाबू ने जवाब दिया.काम होते ही आपको सूचित कर दिया जाएगा व कागज़ात पोस्ट से भेज दिये जाएँगे."
"तो अब मैं निकलू." उसने कहा
"हू अ अ--"
"काम हो जाएगा ना?" प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए उसने पूछा
"आप बार-बार क्यो पूछ रहे है, यकीन नहीं है क्या?" अधिकारी ने जरा रोष से बोला
"तो अब मैं चलू,विश्वास तो है. मगर??... उसने पैंट की जेब मे हाथ डालते हुए कहा
अधिकारी ने चश्मा सिधा करते ही आँखों ही आँखो में कुछ इशारा किया.
वो अपनी पेंट की जेब में हाथ डालकर टटोलते हुए बाहर निकल गया.
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२३-०२-२०१६
"सर! ये लिजीए सारे कागज़ात जिनसे मेरा काम हो सकता है."
"ठिक हैं रख दिजीए।" नज़रें झुकाए हुए ही बाबू ने जवाब दिया.काम होते ही आपको सूचित कर दिया जाएगा व कागज़ात पोस्ट से भेज दिये जाएँगे."
"तो अब मैं निकलू." उसने कहा
"हू अ अ--"
"काम हो जाएगा ना?" प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए उसने पूछा
"आप बार-बार क्यो पूछ रहे है, यकीन नहीं है क्या?" अधिकारी ने जरा रोष से बोला
"तो अब मैं चलू,विश्वास तो है. मगर??... उसने पैंट की जेब मे हाथ डालते हुए कहा
अधिकारी ने चश्मा सिधा करते ही आँखों ही आँखो में कुछ इशारा किया.
वो अपनी पेंट की जेब में हाथ डालकर टटोलते हुए बाहर निकल गया.
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२३-०२-२०१६
अविश्वसी -मन
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