गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

मंजर

आज भी फूंलती है सांसे
धडकता है दिल जोरो से
जब देखती हूँ सरे आम
सिगरेट का कश लेना
या फिर गलबहिया डाले
चौराहे पर घूमना उसका
आँखो के आगे नाच उठता है
वो खौफ़नाकर मंजर
स्त्रीत्व के खंड-खंड होने का
नयना(आरती) कानिटकर ०३/१२/२०१५

घूंघट का संकल्प


           बचपन से गाँव की चिरपरिचित बुराइयों को देखती आ रही  वह अब  सयानी हो चुकी थी और सब कुछ समझने लगी थी. अपने ही गाँव के सारे पुरुषों को हमेशा दिन मे बड के पेड के निचले चबुतरे पर 'तीन-पत्तीखेलते देखा था या फिर शाम होते ही शराब के नशे मे धुत्त .. सोचती क्या यही है यह पुरुष ?
 
जबकि उसके गाँव की स्त्रियाँ भोर होते ही घर का काम निपटा खेतो की ओर चल देती शाम तक खेतों में निराई-गुडाई के साथ-साथ मजदूरी करती नही थकती थी आख़िर पापी पेट का सवाल था।   वह  बडी असमंजस में थी जब देखती और सुनती की साँझ ढले घर आने पर थके शरीर पर पिल पड़ते सबके मरद ...
  
ये देख उसका तो सारा तन-बदन अंगार की तरह जल उठाता था। उसके मन पर  गहरा प्रभाव छोड़ चुकी थी यह रोज की हक़ीकत।   बस अब उसने ठान ली थी की उसका बस चले तो सब कुछ बदलने की ... पर कैसे ?
   बहुत सोच समझकर उसने
गाँव की स्त्रियों को इकट्ठा कर इस पर चर्चा की और सबकी राय जानी। इसके बाद सहमति से  पहले अवैध शराब की बिक्री पर रोक के लिए पंचायत पर धरना दिया घर-घर जाकर पुरुषों को समझाईश .. कुछ की समझ में आया कुछ निरे खूसट निकले
 सब महिलाओ ने सर्वसम्मति से "नशा मुक्ति"
और" जुआ बंदी"  का अभियान चलाया
     अब उसकी संकल्प शक्ति रंग दिखाने लगी  थी और जल्द ही गाँव की हर स्त्री का साथ उसे मिलने लगा - वह सबका दिल जीतने में कामयाब रही थी
और फिर वह दिन आ गया जब--
  सगुन बाई सर्वसम्मति से ग्राम पंचायत छाईकुआं की सरपंच चुन ली गई

    उसका सपना अब सच होने वाला था उसकी आँस जाग उठी  वह खुश थी अपने गाँव की स्त्रियों के मनोबल को देखकर
.
      उसने सरपंच की हैसियत से बचपन से हृदय में बिधे  कोलाहल को समाप्त करने की घोषणा की ---
   "
शराब पीता या जुआँ खेलता गाँव का कोई भी पुरुष नजर आयेगा या पकड़ा जायेगा तो उसके जूते-टोपी उतार उसे गाँव की सीमा के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा "
        आज उसका पहला साक्षात्कार था कोई विदेशी पत्रकार गाँव में आई हुई थी .. गाँव टौरियाँ की किस्मत अब दुनिया देखने वाली थी !
      काश पूरा हिन्दुस्तान भी इसी तरह बेहतर हो--क्या हो पाएगा ऐसा?


  "निश्चित हो सकेगा । इसी तरह की दृढ संकल्प शक्ति के साथ"

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

"व्रत"फासले---विषय आधारित


गुड मार्निग दोस्तो कैसे हो सब लोग ?रात को अच्छे से नींद आई ना सबको, नेहा ने जैसे ही वार्ड मे प्रवेश किया सभी के चेहरे पर मुस्कान छा गई।”
नेहा रोज के नियमानुसार सभी के हाथों गुलाब का फूल थमाते उनको प्यार की झप्पी देती जा रही थी ।तभी--
“रुको नेहा!!!हाथ थामते हुए निमेश ने कहा-तुम्हारी सेवा से मेरे मन का सारा मैल धुल चूका हैं।”
“वो मेरी बड़ी भुल थी । मुझे माफ कर दो मुझे अपने किए का पछतावा हैं और फिर तुम जो मेरी सेवाss---
“नहीं-नहीं ये अब ना हो पाएगा । वो तो मैने नर्स की ट्रेनिंग के बाद सेवा की ली हुई शपथ का परिणाम है।
“निमेश!!शरीर के घाव तो दवा से मिट सकते हैं ,दिल पर जो गहरा घाव तुमने दिया उसे भूलना असंभव है।
हमारे बीच के फासले को अब यू ही रहने दो।"
हाथ छुडा नेहा अगले मरीज की तरफ बढ़ गई।
नयना(आरती)कानिटकर
०१/१२/२०१५

शनिवार, 28 नवंबर 2015

कैद से मुक्त

जब से ब्याकर इस घर मे आयी पति और सासू माँ के इशारे पर ही नाचती रही | सासू माँ दबंग महिला थी अपनी हर बात सही साबित करती और उसे मनवा कर ही दम लेती |
पति देव भी जब-तब छोटी-छोटी बात पर उसे तलाक के लिये धमकाते रहते | फिर भी इन सब परिस्थितियों से लढ़कर चुपचाप रात के अंधेरे मे उसने सिविल सेवा  की तैयारी की थी |
    आज उसका परिणाम निकला था उसे डिप्टी कलेक्टर के पद के लिये चुन लिया गया था .समाचार पत्र मे उसकी तस्वीर सहित परिणाम घोषित हुआ था.
   आज दोनो के मुँह पर ताला जड गया  और वो सांसों की  कैद से मुक्त |
नयना(आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

जरा सी गिरह

हरे रंग की लाल किनारी वाली साड़ी मे सुनयना का रुप जैसे और खिल आया था.
"राज ने छेडा भी उसे "ओहोSS !!! क्या बात है,आज तो ग़जब ढा रही हो."
"हा!! राज आज रक्षा बंधन है ना मुझे "कान्हा"  को राखी बांधनी है .वो मेरे मित्र ,मेरे भाई सभी  तो है .मेरा  अपना भाई तो  नाराज़------"आँखें भर आई सुनयना की.
तभी द्वार की घंटी बजी--- सामने सुजीत को देख ,सब कुछ भूल गई और उसे गले से लगा लिया .
"जरा सी गिरह से तू कितना नाराज गो गया मेरे छुटकू"
भाग कर  अंदर गयी और जल्दी से आरती की थाली ला रक्षा सूत्र उसके हाथ मे बांध दिया.
  आज सुजीत मे उसने कान्हा का रुप देख लिया था.

नयना (आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

"खरीददार"

अवध सिंग ने जब कोठे मे प्रवेश किया तो सारा कमरा शराब की गंध से भर उठा.
वह  अवध को लगभग खिंचते उसे दूसरे कमरे मे ले जाने लगी. तभी उसकी नजर
"अरे!!! ये ये कौन चम्पाकली है तेरे संग. आज तू इसे मुझे सौंप दे. वैसे भी तू अब सूखा फूल---"
"नागिन की तरह फ़ूफ़कार उठी कमला.मजबूरी मे बिकी थी मैं."
"तू!!! मेरी बेटी का खरीददार नहीं हो सकता."
उसे बाहर ठैल भडाक से दरवाज़ा बंद कर लिया.
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५

"नीला आकाश"

सुन्दर वस्तुओ के प्रदर्शनी के एक स्टॉल पर एक हिरे-मोती का व्यापारी और एक सोने का व्यापारी आ पहुँचते है। दोनो भिन्न-भिन्न चीज़े देखते तभी उनकी नजर एक कोने मे पिंजरे मे रखी सफ़ेद मैना पर जाती है,दोनो का मन मोह उठता है उसपर।
" भाई तुम बाकी चीज़े तो रहने दो मुझे ये सफ़ेद मैना बेच दो मैं इसे रोज मोती के दाने चूगाऊँगा।"
"तुम इन्हे छोड़ मुझे बेच दो मैं इसके लिये सोने का पिंजरा बनवा दूँगा ये इस लोहे के पिंजरे मे शोभा नही देती।"
दोनो व्यापारी ही आपस मे उलझ पड़ते है उसे ख़रीदने को.
"नहीं-नहीं मैं इसे नहीं बेच सकता ये तो मेरी जान है।" इसे बेचकर मे------
दोनो बहुत दबाव डालते है उस पर मैना को बेच देने के लिये।
हार कर वो कहता है --"ये मैना इंसानी भाषा जानती व बोलती है।एक काम करता हूँ इसका पिंजरा खोल देता हूँ,ये जिसके भी कांधे पर बैठेगी ,उसी की हो जायेगी।
पिंजरा खुलते ही मैना फ़ुर्र्र्र्र्र्र्र से उड जाती है--"मुझे ना तो मोती चाहिए ना सोने का पिंजरा।"
" वो देखो नीला आकाश बाहे फ़ैलाए मेरा इंतजार कर रहा है।"
नयना(आरती) कानिटकर
२७/११/२०१५