बुधवार, 20 अप्रैल 2016

"वक्री" लघुकथा के परिंदे--मुहूर्तों की सलाखें--४थी


 दोनो ने एक अनाथ बच्ची गोद लेने का निर्णय लिया था ताकी वक्त रहते बच्ची का सही पालन-पोषण किया जा सके और  घर की रौनक को चार चाँद  लग जाए
इस निर्णय से घर  में तो हंगामा मच गया था....
घर वालो की जिद के आगे खर्चिली, अनआशवस्त  आय.वी.एफ़, तकनीक  अपनाने का निर्णय लिया गया। बच्चा सिजरियन होगा यह पहले से तय था। वह अब पूरे दिनों मे चल रही थीं
आखिर तय हुआ की इस अमुक तारीख़ को , इतनी बजे बच्चे का जन्म कराया जाए तो सारे ग्रहयोग उसके साथ होने से  उसके जीवन मे राजयोग होगा
मिनल के  थोड़ा असहज महसूस करते ही मोहित ने डा,रेखा से संपर्क कर अस्पताल...
"अरे!  कुछ ना होगा माँ बेटे को. अभी  राहु थोडा वक्री चल रहा हैजल्द मार्ग बदलने वाला है पिताजी अड़े रहे अपनी बात पर, इधर मिनल के हालात...
डा,रेखा ने तुरत-फुरत आपरेशन की तैयारी की किंतु  बच्चे को...
एक माँ की ख़ुशियाँ हमेशा के लिए वक्री हो सलाख़ों मे कैद हो गई.

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२०-०४-२०१६


"टी.आर.पी" लघुकथा के परिंदे ३ री

----"टी.आर.पी"----

 "
ये देखो सिद्धार्थ! चारो ओर सूखे की मार, प्यासी धरती, घरो में खाली बर्तन, बिन नहाये गंदले से बच्चे ये तस्वीरे देखो....
अरे ,कहाँ गए ! ये सब किसकी तस्वीर ले रहे हो तुम ....! "घुटनो तक साड़ी चढाए खुदाई करती मज़दूरन की, तो कही स्तनपात कराती आदिवासी खेतिहर मज़दूर, तो कही उघाडी पीठ के साथ रोटी थेपती महिला की ...कैमरा हटाओ ! "यह सब थोडे ही ना हमे कवरेज करना था। हमे सुखाग्रस्त ग्रामीण ठिकानों का सर्वे कर उस पर रिपोर्ट तैयार करनी है"
"
तुमको इन सब के साथ रिपोर्ट तैयार करना होगा , वरना...!"
वरना क्या सिड...? "
"
वरना मैं दूसरे चैनल वाले के साथ..."
 "तुम  भी ना बाज आओ इस केकडा प्रवत्ति से.....! "
"
मुझे ताना मत दो रश्मि! अगर हमने इन तस्वीरों के साथ रिपोर्ट तैयार नही की तो चैनल का टी.आर.पी कैसे बढेगा और मेरा प्रमोशन तो इसी प्रोजेक्ट ...?"
"मेरे सपने तुम्हारे सपनों से ज्यादा ऊँचे है"
नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल

मौलिक एंव अप्रकाशित


मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

प्रतिष्ठा

"अरे विचार! इतनी जल्दी लौट आए. क्या भावना नही मिली तुम्हें."
"मिली थी! मीनी, मै गया भी था मिलने सरिता-मुक्ता से लेकिन मिलते वक्त उनमे वो उछाह (उत्साह) नहीं था जैसे कि हम पहले मिला करते थे.
"और फ़िर कादम्बिनी,कविता क्या ये भी नही मिली तुम्हें"
"नही मीनी! मै उनके पास गया ही नही, आखिर मेरी भी तो कुछ प्रतिष्ठा है,अस्तित्व है मैत्री का उनके जीवन मे. अगर वो उन्हें मंजुर नही तो...
"ओह!! मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ विचार."
"जानता हूँ तभी तो लौट आया. तुम मुझे हर बात पर टोकती भी नहीं हो, चाहे मे कुछ अनकहा रह जाऊँ या कम शब्दों मे अपनी बात रखूँ."
नयना(आरती) कानिटकर

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

---उस-पार का रास्ता ---


ना स्वीकारा हो
राम ने सीता को
शाल्व ने अंबा को
स्वीकारा है सदा दायित्व
उसने अभिमान से
हारी नहीं है कभी
चाहे छली गई हो
भस्म हुए हो
स्वप्न उसके,
किंतु वो,
आज भी तलाश रही है
मंजिल से,
उस-पार का रास्ता

मौलिक एवं अप्रकाशित

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

वफ़ादर-३

अपनी सहेली संग कॉलेज से आते हुए दिप्ती  के पैर अचानक ठिठक  गये
"
स्नेहा! देख ईश्वर भी क्या- क्या रंग दिखाता है और हरेक का भाग्य भीएक तरफ़ ये दो मंजिला मकान और उसके कोने से सटे ज़मीन के टुकड़े पर टूटा-फूटा ये मकान,कचरा और ये गंदा सा आदमी उफ़!  इसे कैसे बर्दाश्त..."
"अरे! नहीं दिप्ती ये डा.आशुतोष है.नियती की मार झेल रहे है
"डा आशुतोष..?"
"हा! हा! सच कह रही हूँ.
अर्थ शास्त्र के ज्ञाता थे ये। "अरे! बडी लंबी कहानी है फ़िर भी बताती हूँ
आशुतोष जी  और अराध्या बहूत अच्छे पडौसी थे। अचानक आशुतोष के माता-पिता एक दूर्घटना मे चल बसे, तब अराध्या का बडा मानसिक संबल मिला...बहूत कुछ गुजरा बीच में

"फ़िर..अचानक ये सब?"
"बस नियती ने करवट बदली अराध्या के पिता का व्यपार डूब गया आशुतोष जी ने सहारा दिया बेटा बनकर रहे लेकिन तुम तो जानती हो पैसा अच्छे-अच्छे की नियत बदल देता है। 
एकबार  जब डा.किसी सेमिनार के सिलसिले में लंबे समय के लिये बाहर गये थे अराध्या के पिता ने बेटी के साथ मिलकर सब हडप लिया और अराध्या का...

आशुतोष तो लूट चुके थे, संपत्ति से भी और अराध्या से भी। अवसाद मे घिर गये। नौकरी जाती रही, बस अब इसी तरह...
अराध्या के घर वाले भी कहाँ चले गये किसी को नहीं पता.बस ये "डागी" तब भी उन साथ था, आज भी है अपने पिल्लो संग
 ये सबसे कहते है कुत्ते समान  वफ़ादार कोई नही इनका झुटन  खाने से मेरे रगो मे भी वफ़ादारी दौड़ रही है
नयना(आरती) कानिटकर

गुरुवार, 24 मार्च 2016

मेरे विचार--नया लेखन व लघुकथा के परिंदे ५वी प्रस्तुति

"अरे विचार! कहाँ चल दिये अचानक मुझे  यू अकेला छोड़कर" मीनी (कहानी) ने पूछा
"तुम बडी संकुचित और लघु हो गई हो आजकल. मैं कुछ दिन अपनी पुरानी सहेलियो  के साथ मुक्त विचरना चाहता हूँ"
"मतलब...."
 "मीनी मे तुम्हें छोड़कर कही नही जा रहा,बस कुछ दिन  मुक्ता, सरिता,कादम्बिनी से मिलने को उत्सुक हूँ। कई दिन बीत गये उनसे मिलकर। भावना मुझे ले जाने वाली है उनके पास
"मगर फ़िर मेरा क्या?"
" अरे मीनी!  मैं तो तुम्हारे साथ हूँ हरदम।  तुम अभी तंज और विसंगति  के पालन-पोषण... ऐसे मे मैं कुछ दिन के लिए...."
"रुको रुको विचार! ये दोनो ... सिर्फ़ मुझे दोष मत दो। सब लोग अब बडे समझदार हो गये है.लोगो के पास  अब ज्यादा वक्त कहाँ होता है। वो देखो कितनी धुंध और कुहासा छाया है चारों ओर.
लोग ज्यादा दूर का देख भी नहीं पाते


नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल

सोमवार, 21 मार्च 2016

दबा हुआ आवेश--लघुकथा के परिंदे-- दिल की ठंडक---- केक्टस मे फूल


पड़ोस के गुप्ता आंटी के घर से आती तेज आवाज़ से तन्मय के कदम अचानक बालकनी मे ठिठक गये। अरे! ये आवाज़ तो सौम्या की है।  यथा नाम तथा गुण वाली सौम्या को उसमे हरदम बस घर के कामों मे ही मगन देखा था या फ़िर चुपचाप कॉलेज जाते हुए।  हरदम उनका एक जुमला जबान पर होता काम ना करेगी तो ससुराल वाले लात मार बाहर कर देंगे।  वो भी बस चुपचाप क्यो सहती समझ ना पाया था और फ़िर वह ब्याह कर चली गई थी शहर छोड़कर...
"माँ! समझती क्यो नहीं हो भाभी पेट से है उनसे इतने भारी-भारी काम ..."
"सुन सौम्या! अब तुझे इस घर मे बोलने का कोई हक नहीं है. जो भी कहना सुनना है... और अब भाभी के रहते तुझे कोई काम को छूने की जरुरत नही है।  वैसे भी वो तेरी परकटी आधुनिक सास कुछ काम ना करती होगी। सारे दिन पिसती होगी तुम कोल्हू सी। "
"बस करो माँ! कई दिनो से सौम्या का दबा  आवेश बाहर निकल आया था।  जिसे तुम  परकटी  कह रही हो ना वो लाख गुना बेहतर है तुमसे।  समझती है मेरे मन को भी।  पुरी आज़ादी है मुझे वहाँ काम के साथ-साथ अपने शौक पूरे करने की और... ना ही भाई की तरह तुम्हारे दामाद को उन्होने मुट्ठी मे कर रखा है। "
"माँ!आखिर एक औरत ही औरत को कब समझेगी। "
पड़ोस के आँगन के केक्टस मे आज फूल खिल आये थे और तन्मय के दिल मे ठंडक।

 मौलिक एंव अप्रकाशित
नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल